Friday, 17 July 2015

धीरूभाई अंबानी

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नाम धीरूभाई अंबानी
जन्म
 


28 दिसम्बर  १९३२  चोरवाड , गुजरात , भारत 
मृत्यु 


6 जुलाई  २००२ , मुंबई , महाराष्ट्र ,भारत 
नागरिकता 


भारतीय 
क्षेत्र 


व्यापार 

उपलब्धि 


मुंबई आने से पहले धीरू भाई अम्बानी ने १०० रुपये का नोट तक नहीं देखा था , और उसके बाद उन्होंने आरबों की संपत्ति बनायीं | एक समय पेट्रोल पम्प पर काम करने से लेकर पेट्रो कैमिकल रीफाईनरी बनाने वाले इस महान व्यक्ति ने करोड़ों लोगों के लिए एक आदर्श स्थापित किया. इन्ही की वजह से एक आम- भारतीय भी स्टॉक मार्केट में रुचि दिखाने लगा. धीरुभाई ने साबित कर दिया कि साधारण से साधारण व्यक्ति भी बड़े से बड़ा सपना देख सकता है और उन्हें साकार कर सकता है.

'मेरी सफलता का राज़ मेरी  महत्वाकांक्षा और अन्य पुरुषों का  मन जानना है |'  
-धीरूभाई अंबानी
सही उद्यमशीलता जोखिम लेने से ही आता है.  
-धीरूभाई अंबानी
एक  दिन  धीरुभाई  चला  जायेगा . लेकिन  रिलायंस के  कर्मचारी  और  शेयर  धारक  इसे  चलाते  रहेंगे . रिलायंस अब  एक  विचार  है  , जिसमे  अम्बानियों  का  कोई  अर्थ  नहीं  है .
धीरूभाई अंबानी
कठिनाइयों में भी अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करें कठिनाइयों  को  अवसरों में तब्दील करें. असफलताओं के बावजूद, अपना  मनोबल ऊँचा रखें. अंत में सफलता आपको अवश्य मिलेगी |
धीरूभाई अंबानी
बड़ा  सोचो , जल्दी  सोअचो , आगे  सोचो . विचारों  पर  किसी  का  एकाधिकार  नहीं  है .
धीरूभाई अंबानी
हमारे  स्वप्न  विशाल   होने  चाहिए . हमारी  महत्त्वाकांक्षा  ऊँची  होनी  चाहिए . हमारी  प्रतिबद्धता  गहरी  होनी  चाहिए  और  हमारे  प्रयत्न  बड़े  होने  चाहिए . रिलायंस  और  भारत  के  लिए  यही  मेरा  सपना  है .
 धीरूभाई अंबानी
रिलायंस  की सफलता का राज़ मेरी  महत्वाकांक्षा और अन्य पुरुषों का  मन जानना है |'  
-धीरूभाई अंबानी
हम  अपने  शाशकों  को  नहीं  बदल  सकते  पर  जिस  तरह  वो  हम  पे  राज  करते  हैं  उसे  बदल  सकते  हैं .
 धीरूभाई अंबानी
फायदा  कमाने  के  लिए  न्योते  की  ज़रुरत  नहीं  होती .
 धीरूभाई अंबानी
रिलायंस  में  विकास  की  कोई  सीमा  नहीं  है . मैं  हमेशा  अपना   वीज़न  दोहराता  रहता  हूँ . सपने  देखकर  ही  आप  उन्हें  पूरा  कर  सकते  हैं .
 धीरूभाई अंबानी
यदि  आप  दृढ  संकल्प  और  पूर्णता  के  साथ  काम  करेंगे  तो  सफलता  ज़रूर  मिलेगी.
 धीरूभाई अंबानी
कठिन  समय  में  भी  अपने  लक्ष्य  को  मत  छोड़िये  और  विपत्ति  को  अवसर  में  बदलिए .
धीरूभाई अंबानी
युवाओं  को  एक  अच्छा  वातावरण  दीजिये . उन्हें  प्रेरित  कीजिये . उन्हें  जो  चाहिए  वो   सहयोग  प्रदान  कीजिये . उसमे  से  हर  एक  आपार  उर्जा  का  श्रोत  है . वो  कर  दिखायेगा .
धीरूभाई अंबानी
मेरे  भूत , वर्तमान  और  भविष्य  के  बीच  एक  आम  कारक  है  : रिश्ते  और  विश्वास  . यही  हमारे  विकास  की  नीव  हैं .
धीरूभाई अंबानी
समय  सीमा  पर  काम  ख़तम  कर  लेना  काफी  नहीं  है  ,मैं  समय  सीमा  से  पहले  काम  ख़तम  होने  की  अपेक्षा  करता  हूँ|
धीरूभाई अंबानी
हम भारतीयों की  समस्या यह है कि हमने बड़ा सोचने  की आदत खो दी है!
धीरूभाई अंबानी

मैं भारत को एक महान आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखता हूँ .
धीरूभाई अंबानी
यदि भारत को एक महान राष्ट्र बनना चाहता है, तो हमें भरोसा करने का साहस होना चाहिए. यह मेरा विश्वास है.
धीरूभाई अंबानी
जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं , वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं |
धीरूभाई अंबानी
ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता |
धीरूभाई अंबानी
'विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है |
धीरूभाई अंबानी
यदि आप दृढ़ संकल्प के साथ और पूर्णता के साथ काम करते हैं, तो सफलता आपका पीछा करेगी|
धीरूभाई अंबानी

हम दुनिया को साबित कर सकते हैं  कि भारत सक्षम राष्ट्र  हैं. हम भारतीयों को प्रतियोगिता से डर नहीं लगता . भारत उपलब्धियां प्राप्त करने वालों का राष्ट्र है.
धीरूभाई अंबानी


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Monday, 6 July 2015

भगत सिंह




भगत सिंह


जन्म: 27 सितम्बर, 1907
निधन: 23 मार्च, 1931
उपलब्धियां: भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका
शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गया। उनके लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना। भगत सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना जरुरी था।
हालाँकि अंग्रेज सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत सिंह व्यक्तिगत तौर पर आतंकवाद के आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के कारण भगत सिंह को राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे। ऐसे समय पर जब गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र विकल्प थे, भगत सिंह एक नयी सोच के साथ एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।
प्रारंभिक जीवन
भगत सिंह का जन्म पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार में 27 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनकी याद में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर रख दिया गया है। वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे। ग़दर पार्टी की स्थापना ब्रिटिश शासन को भारत से निकालने के लिए अमेरिका में हुई थी। परिवार के माहौल का युवा भगत सिंह के मष्तिष्क पर बड़ा असर हुआ और बचपन से ही उनकी नसों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी।
1916 में लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय में पढ़ते समय युवा भगत सिंह जाने-पहचाने राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के संपर्क में आये। उस समय पंजाब राजनैतिक रूप से काफी उत्तेजित था। जब जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड हुआ तब भगत सिंह सिर्फ १२ वर्ष के थे। इस हत्याकांड ने उन्हें बहुत व्याकुल कर दिया। हत्याकांड के अगले ही दिन भगत सिंह जलिआंवाला बाग़ गए और उस जगह से मिट्टी इकठ्ठा कर इसे पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा। इस हत्याकांड ने उनके अंग्रेजो को भारत से निकाल फेंकने के संकल्प को और सुदृढ़ कर दिया।
क्रन्तिकारी जीवन
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए। यहाँ वह गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आये और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब उन्हें अपनी दादी माँ की बीमारी की खबर मिली तो भगत सिंह घर लौट आये। उन्होंने अपने गावं से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। वह लाहौर गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का सन्देश फैलाना शुरू किया। वर्ष 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लिया और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आये। दोनों ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।
फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया। भगत सिंह ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा, जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई। यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को प्रातःकाल फांसी दे दी गयी।

लाल कृष्ण आडवाणी


लाल कृष्ण आडवाणी

Lal krishna Advani 
लाल कृष्ण आडवाणी
स्रोत: US State Department

जन्म: 8 नवम्बर 1927
जन्म स्थल: करांची (पाकिस्तान)
पद/कार्य: राजनेता, जन संघ के पूर्व अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष, पूर्व उप-प्रधानमंत्री
लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। एक अनुभवी राजनेता और भारतीय जनता पार्टी के भूतपूर्व अध्यक्ष, एल के आडवाणी का राजनैतिक सफ़र बहुत लम्बा और उतार-चढाव से भरपूर रहा है। वे भारतीय राजनीति के सर्वाधिक आदरणीय चेहरों में एक हैं। इनका राजनैतिक सफ़र विवादों से भरपूर रहा है – चाहे वो जिन्नाह प्रकरण हो, हवाला कांड हो या फिर बाबरी मस्जिद विध्वंस। उनके उच्च बौध्दिक स्तर, अडिग सिद्धांत और आदर्शो ने उन्हें इन सारी परिस्थितियों से लड़ने में मदद की और उन की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओ को नई उंचाई पर ले गए। एल.के. आडवाणी का व्यक्तित्व प्रभावशाली और दृढ निश्चय से भरपूर है और इसी वजह से वे आज भी कई लोगों के प्रेरणा स्तोत्र हैं।
प्रारंभिक जीवनएल. के. आडवाणी का जन्म अखंड भारत के करांची, सिंध प्रान्त, में किशनचंद डी आडवाणी और ज्ञानी देवी के घर हुआ था। उनकी शिक्षा सेंट पेट्रिक हाईस्कूल और दयाराम गिडूमल नेशनल कॉलेज, पाकिस्तान, से हुई। बाद में उन्होंने गवर्मेंट लॉ कॉलेज, बॉम्बे, से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की।
कैरियर और राजनैतिक जीवनएल के आडवाणी ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी। मॉडल हाईस्कूल, करांची, में वह अंग्रेजी, गणित, इतिहास और विज्ञान जैसे विषय पढाते थे। उन के राजनैतिक सफ़र की शुरुआत तब हुई जब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सचिव चुने गए। कुछ सालों बाद उन्हें भारतीय जनसंघ का सदस्य चुना गया। विभिन्न जिम्मेदारियां निभाने के बाद उन्हें आख़िरकार अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। इसी दौरान जन संघ अन्य राजनैतिक पार्टियों के करीब आया और जनता पार्टी का निर्माण हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में आपातकालीन शासन की अलोकप्रियता ने जनता पार्टी के सत्ता में आने के रास्ते खोल दिए। इस सरकार में आडवानी को सूचना और प्रसारण मंत्रालय सौंपा गया। आतंरिक कलह और एकजुटता की कमी के कारण जनता पार्टी सरकार ज्यादा लम्बे समय तक कार्य नहीं कर पाई। इसके पश्चात भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ और एल के आडवाणी इस पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्य थे। एल के आडवाणी ने राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।
1986 में एल के आडवाणी को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। आडवाणी ने आक्रामक हिंदुत्व नीति अपनाकर बीजेपी को नयी दिशा दी और बीजेपी धीरे-धीरे लोगों के बीच जगह बनाने में कामयाब हुई। सन 1989 के चुनावों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए 89 सीटों पर कब्ज़ा किया और नेशनल फ्रंट को सरकार बनाने के लिए बाहर से समर्थन दिया। वर्ष 1991 के रथयात्रा के दौरान जब आडवानी को बिहार में गिरफ्तार किया गया तब बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और इस तरह नेशनल फ्रंट सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और अगले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई।
1991 से 1996 तक बीजेपी आडवानी के नेतृत्व में विपक्ष में बैठी और 1996 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन उनकी सरकार मात्र 13 दिन ही चल पाई। राजनैतिक अनिश्चितताओं से भरे अगले दो सालों के बाद बीजेपी ने NDA गठबंधन बनाया और 1998 में सत्ता में वापसी की लेकिन लगभग 13 महीनों के बाद AIADMK के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार गिर गयी और दोबारा चुनाव हुए जिसमे NDA गठबंधन ने सत्ता में वापसी की और लाल कृष्ण आडवाणी को पहले गृह मंत्री और बाद में उप-प्रधानमंत्री बनाया गया। इस सरकार ने 5 साल पूरे किये। यह पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी जिसने 5 साल की अवधि पूरी की थी।
वर्ष 2004 के चुनाव में सत्ता में वापसी की उम्मीद के बावजूद NDA गठबंधन कांग्रेस से पीछे रह गयी और कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायन्स (यूपीए) ने सरकार बनायी। चुनाव के परिणाम आडवानी के लिए खास तौर पर एक झटका था। चुनाव में हार के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया जिसके कारण आडवानी बीजेपी के सबसे अग्रणी नेता बनकर उभरे। सन 2004 से लेकर 2009 तक वह विपक्ष के नेता रहे।
वर्ष 2009 के लोक सभा चुनावों में आडवानी को बीजेपी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने पूरे  जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया पर शायद उनके भाग्य में भारत का प्रधानमंत्री बनना नहीं था क्योंकि बहुत उमीदों के बावजूद NDA गठबंधन, यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायन्स (यूपीए) को नहीं पिछाड पाई। इसके पश्चात आडवानी ने लोक सभा से विपक्ष के नेता के पद से इस्तीफ़ा दे दिया और उनकी जगह पर सुषमा स्वराज को यह पद दिया गया।
योगदानभारतीय जनता पार्टी की सफलता और विकास में एल. के. आडवाणी का बहुमूल्य योगदान रहा है। वे पार्टी के सर्वाधिक वरिष्ठ नेता होने के साथ-साथ प्रभावशाली और अग्रीम पंक्ति के नेता रहे हैं और अपने जीवन के कई दशक पार्टी की सेवा में समर्पित कर दिए।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1927: कराची में जन्म
1936-1942: सेंट पैट्रिक हाईस्कूल, कराची से शिक्षण प्राप्त किया
1942: आरएसएस से जुड़े
1944: मॉडल हाईस्कूल कराची में शिक्षक की नौकरी
1947: सिंध छोड़ कर दिल्ली आए
1947-1951:  करांची शाखा में आरएसएस के सचिव होने के नाते आरएसएस के कार्यो का
अलवर, भरतपुर, कोटा, बूंदी और झालावार में प्रचार किया
1957: अटल बिहारी बाजपयी की सहायता हेतु दिल्ली आये
1958-1963: दिल्ली स्टेट जन संघ के सचिव बनाए गए
1960-1967: जन संघ की राजनैतिक पत्रिका आर्गेनाइजर में सहायक संपादक रहे
1965: कमला आडवाणी से विवाह हुआ
1970: राज्यसभा में प्रवेश
1972: भारतीय जन संघ के अध्यक्ष चुने गए
1975: आपातकाल के दौरान बंगलोर में गिरफ्तार हुए और उन्हें बाकी बीजेएस सदस्यों के साथ
बंगलौर सेंट्रल जेल भेजा गया
1977-1979: सूचना और प्रसारण मंत्री बने
1986: भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नियुक्त किये गए
1980-1986: बीजेपी के महासचिव पद पर नियुक्त किये गए
1986: भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नियुक्त किये गए
1988: बीजेपी के पार्टी महासचिव बनाये गए
1990: सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा का आयोजन किया
1997: भारत के 50 वे स्वतंत्रता दिवस पर स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का आयोजन
1999-2004: उप-प्रधान मंत्री रहे
2004-2009: लोक सभा में विपक्ष के नेता रहे

Saturday, 27 June 2015

Biju Patnaik

Biju Patnaik


Biju Patnaik
Biju Patnaik.jpg
3rd Chief Minister of Orissa
In office
5 March 1990 – 15 March 1995
Preceded byHemananda Biswal
Succeeded byJanaki Ballabh Pattanaik
In office
23 June 1961 – 2 October 1963
Preceded byHarekrushna Mahatab
Succeeded byBiren Mitra
Union Minister, Steel, Mines and Coal
In office
March 1977 – Jan 1980
Prime MinisterMorarji Desai
ConstituencyKendrapara
Personal details
BornBijayananda Patnaik
5 March 1916
Cuttack, Orissa, British India
Died17 April 1997 (aged 81)
New Delhi
Political partyJanata Dal (1989-1997)
Other political
affiliations
Janata Party (1977-1989)
Utkal Congress (1969-1977)
Indian National Congress(1946-1969)
Spouse(s)Gyan Patnaik
ChildrenPrem Patnaik,
Naveen Patnaik,
Gita Mehta
Alma materRavenshaw College
ProfessionPilot, politician
ReligionHindu
Biju Patnaik (Oriyaବିଜୁ ପଟ୍ଟନାୟକ; 5 March 1916 – 17 April 1997) was an Indian politician and Chief Minister of Odisha for two terms.

Early life

Biju Patnaik was born on 5 March 1916 to Lakshminarayan and Ashalata Patnaik. His parents belong to G.Nuagan, Bhanjanagar,Ganjam district, around 80 km from Bramhapur. He was educated at Ravenshaw College in Odisha but due to his interest in aviation he dropped out and trained as a pilot. Patnaik flew with private airlines but at the start of the Second World War he joined the Royal Indian Air Force eventually becoming head of air transport command. While in service he began an interest in nationalist politics and used air force transports to deliver what was seen as subversive literature to Indian troops. But Patnaik remained committed to fighting the Axis Powers and when he was jailed for his illegal activities he only served two years in prison. Shortly after independence Pakistani tribesman invaded Kashmir and at Nehru's request he helped airlift the first Indian soldiers into Srinagar.

Role in Indonesian freedom struggle


Biju Patnaik met with Jawaharlal Nehru during his participation in Indian freedom struggle and became one of his trusted friends. Nehru viewed the freedom struggle of the Indonesian people as parallel to that of India, and viewed Indonesia as a potential ally. When the Dutch attempted to quell Indonesian independence on 21 July 1947, President Sukarno ordered Sjahrir, the former prime minister of Indonesia, to leave the country to attend the first Inter-Asia Conference, organised by Nehru, in July 1947 and to foment international public opinion against the Dutch. Sjahrir was unable to leave as the Dutch controlled the Indonesian sea and air routes. Nehru asked Biju Patnaik, who was adventurous and an expert pilot, to rescue Sjahrir  Biju Patnaik and his wife flew toJava and brought Sultan Sjahrir out on a Dakota reaching India via Singapore on 24 July 1947. For this act of bravery, Patnaik was given honorary citizenship in Indonesia and awarded the 'Bhoomi Putra', the highest Indonesian award, rarely granted to a foreigner. In 1996, when Indonesia was celebrating its 50th Independence Day, Biju Patnaik was awarded the highest national award, the 'Bintang Jasa Utama'.

Role in saving Kashmir

Biju Patnaik piloted the first plane that left Palam Airport at Delhi on 27 October 1947 at dawn and landed at Srinagar Airport in the early morning. He brought 17 soldiers of 1-Sikh regiment commanded by Lt.Col. Dewan Ranjit Rai. "...The pilot flew low on the airstrip twice to ensure that no raiders were around... Instructions from Prime Minister Nehru’s office were clear: If the airport was taken over by the enemy, you are not to land. Taking a full circle the DC-3 flew ground level. Anxious eye-balls peered from inside the aircraft – only to find the airstrip empty. Nary a soul was in sight. The raiders were busy distributing the war booty amongst them in Baramulla."

Politics in independent India

Patnaik's political ideals were centred in socialism and federalism. His strong advocacy for equal resources to all Indian states who needed such, made him a champion of his Oriya constituents.
In 1946 Patnaik was elected uncontested to the Odisha Legislative Assembly from North Cuttack constituency. In 1952 and 1957 he won from Jagannath Prasad and Surada, respectively. In 1961 he assumed the presidency of the state Congress. Under his leadership, the Congress Party won 82 of 140 seats and Patnaik (representing Chowdwar constituency) became the chief minister of Odisha on 23 June 1961 and remained in the position until 2 October 1963 when he resigned from the post under the Kamaraj Plan to revitalise the Congress party. He was the Chief Minister of Odisha at the age of 45.
Patnaik was close to Indira Gandhi who took over the Congress Party in 1967. However, they clashed in 1969 over the Presidential election. He left the Congress and formed a regional party—the Utkal Congress. In the 1971 assembly poll, his party did reasonably well. Patnaik then re-established contact with his old friend Jayaprakash Narayan and plunged into the JP movement as it picked up momentum in 1974. When the Emergency was declared in 1975, Biju Patnaik was one of the first to be arrested along with other opposition leaders.
He was released in 1977. Later, in the same year, he was elected to the Lok Sabha for the first time from Kendrapara and became Union minister for steel and mines in both theMorarji Desai and the Charan Singh governments until 1979. He was re-elected to the Lok Sabha again in 1980 and 1984 from Kendrapara as Janata Party candidate despite the Congress wave in 1984 following Indira Gandhi's death. With the Congress defeat in 1989, he bounced back into the political limelight. However, after playing a key behind-the-scenes role in manoeuvring V.P.Singh to the Prime Minister's post, he again chose to go back to Odisha, and prepared for the assembly election. In 1990 state assembly election, the Janata Dal received a thumping majority (two third assembly seats) which saw Biju Patnaik being the Chief Minister of Odisha for the second time until 1995.
He was re-elected to the Lok Sabha in 1996 from Cuttack and Aska constituencies as a Janata Dal candidate. He retained the latter until his death on 17 April 1997 of cardio-respiratory failure.
In 1992, Bijayananda Patnaik left this quote for the people of Odisha;
"In my dream of the 21st century for the State, I would have young men and women who put the interest of the State before them. They will have pride in themselves, confidence in themselves. They will not be at anybody’s mercy, except their own selves. By their brains, intelligence and capacity, they will recapture the history of Kalinga."

Achievements as a public representative

Biju Patnaik set up Kalinga tubes, Kalinga Airlines, Kalinga Iron work, Kalinga Refractories and the Kalinga, a daily Oriya newspaper. In 1951 he established the internationalKalinga Prize for popularisation of Science and Technology among the people and entrusted the responsibility to the UNESCO. The projects which he was known to have spearheaded includes the Port of ParadipOrissa aviation centreBhubaneswar Airport, the Cuttack-Jagatpur Mahanadi highway bridge, Regional Engineering College, RourkelaSainik School BhubaneswarOrissa University of Agriculture and Technology-BhubaneswarNALCO (National Aluminum Company) and the Choudwar & Barbilindustrial belts.
He also established the Kalinga Cup in football.

Family

Biju Patnaik was married to Gyan Patnaik. Biju Patnaik's son, Naveen Patnaik, is the current Chief Minister of Odisha. His daughter, Gita Mehta, is an English writer. His elder son Prem Patnaik is a Delhi based industrialist.

Popular incidents and quotes

Paradeep Port: Patnaik was keen to build the port at Paradeep. When the Central government refused to give funds to build the Paradeep port, he said: To hell with the Government of India. I will build the port with state government and my own money. And he spent Rs 1.60 billion on it. Later, of course, Nehru sanctioned funds for the project. Today that is Odisha's most prominent port.
Nehru and Patnaik: Nehru Patnaik "India's buccaneer". When Nehru was criticised in the Parliament for his decision to provide more aid to Odisha. Nehru replied, '"Biju Patnaik has the courage, dynamism and zeal to work. So there is no blunder in giving more aid to Odisha." During the Sino-Indian War in 1962, Nehru consulted the Oriya leader repeatedly for advice. For sometime he was Nehru's defence advisor, unofficially of course. 'The prime minister was dazzled by Mr Patnaik's familiarity with military subjects,' wrote a political commentator of the time.
Anti-corruption stand: To fight against corruption he once proclaimed 'beat up all corrupt officials'. Although his government failed to control and defeat corruption.
On death: When a journalist asked in him on his 79th birthday how he would like to die, he had quipped, 'I would like to die in an air crash rather than from prolonged illness. I would like to die instantly, just fall down and die'. This was later narrated by one of Biju Patnaik's close associates Mr.Manas Ranjan,Advocate.
On Odisha and for Oriyas: To be born poor is not a crime but to remain so is indeed a crime'. 'Be loyal not to me but to the destiny of the State'. 'Odisha is a rich state where poor people live'. 'Be a pride to your State and not a shame'.

Memorials

The Government of Odisha has named several institutions after the name of Biju Patanaik. They include the Biju Patnaik Airport at Bhubaneswar, the Biju Patnaik University of TechnologyBiju Patnaik Stadium at Nalco Nagar,Angul etc. Also his son Naveen Patnaik made his birthday 5 March as the Panchayat Raj Divas, a holiday in Odisha in his memory.

Biju Patnaik Memorial

Legislative history


HouseConstituencyStartEndPartyNotes
11th Lok SabhaAska199617 April 1997*Janata Dal*Expired
10th Vidhan SabhaBhubaneswar19901995Janata Dal
9th Vidhan SabhaBhubaneswar19851990Janata
8th Lok SabhaKendrapara198425 March 1985**Resigned
7th Lok SabhaKendrapara1980
8th Vidhan SabhaPatkura198011 June 1980*Janata (S)*Resigned[9]
6th Lok SabhaKendrapara1977
6th Vidhan SabhaRajnagar19741977Utkal Congress
Rajya SabhaOdisha13 May 19716 October 1971Janata Dal
3rd Vidhan SabhaChoudwar19611967Congress
2nd Vidhan SabhaSurada19571961Congress
1st Vidhan SabhaJagannath Prasad19511957Congress